फुले फिल्म देखने ऊमडा जनसैलाब,सरकार से टैक्स फ्री की मांग

फूलों की पत्तिया से किया दर्शकों का स्वागत, जताया आभार
भीलवाड़ा:-भैरू लाल माली
अजमेर/भीलवाड़ा।सामाजिक क्रांति के अग्रदूत व नारी शिक्षा के प्रेरक महात्मा ज्योतिबा फुले व माता सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित फिल्म "फूले" अजमेर के मृदंग सिनेमा घर में केवल एक शो डा, अम्बेडकर कल्याण संस्थान द्वारा आयोजित निशुल्क प्रदर्शन था।
इस फिल्म को देखने के लिए लोगों में काफी उत्साह, जोश, उमंग है।हाऊस फुल के कारण लोग 10.30 बजे आकर बैठ गये ।
फिल्म की शुरुआत महात्मा ज्योतिबा फुले डॉ आंबेडकर भीमराव अंबेडकर की तस्वीर पर माल्यार्पण है पुष्पांजलि और दीप प्रज्वलित कर सभी आने वाले दशकों से माल्यार्पण पुष्पांजलि करवरकर एंट्री दी गई।
अध्यक्ष डा. चेतराम रामपुरिया, गजानन सरावता, करण सिह राजोरिया, नवीन मेघवाल, भरत सिवासिया उपस्थित थे।
इस फिल्म में 18वीं शताब्दी में महात्मा ज्योतिबा फुले और माता सावित्रीबाई फुले ने जो संघर्ष किया है उसके जीता- जागता उदाहरण है उस जमाने में "शिक्षा" की महिलाओं के लिए दूर तक परछाई नहीं पड़ने दी जाती थी ! विधवा होने पर बहुत अत्याचार किया जाता था, पुरुष तो दूसरी शादी कर लेता था और महिलाओं का सर मुंडन करके उसे चार दिवारी के अंदर ही बंद रखा जाता था ।
अवैध बच्चे "यशवंत "को गोद लेकर मिशाल पेश की और उसे दत्तक पुत्र बनाया , पहला "विधवा आश्रम" खोला। महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी माता सावित्रीबाई फुले ने पहले स्वयं पढ़ाके योग्य बनाया फिर माता सावित्रीबाई फुले अपनी सहपाठी फातिमा शेख से मिलकर हिंदुस्तान की पहली पाठशाला खोली इसके अलावा पानी पीने के लिए भी उन्होंने अपने ही घर मे "कुआं" खोदा। अपनी अपनी जमीन बेचकर पाठशाला खोली ।
उन्होंने एक अलग "सत्यशोधक समाज" की स्थापना की। माता सावित्रीबाई फुले पहली महिला शिक्षिका तो हे ही । साथ मे पहली महिला हे जिन्होंने अपने पति की चिता को "अग्नि" दी ! इस तरह के संघर्ष अत्याचार, त्याग, सेवाभाव को निर्माता निर्देशक आनंद महादेव ने बहुत ही शानदार तरीके से जीवंत फिल्मकन किया है।
18वीं शताब्दी को ध्यान में रखते हुए शानदार फिल्म का चित्रण किया । *फिल्म के अंत में जब दर्शक गण मर्दंग सिनेमा के बाहर निकले तब उनका माली समाज के प्रदीप कुमार कछावा व कल्याण संस्थान की महिलाओं के द्वारा फूलों से फूल उछालकर आभार व्यक्त किया ।
उनका अभिनन्दन किया।दर्शकों ने उत्साहित होकर कर महात्मा ज्योतिबा फुले.....माता सावित्रीबाई फुले अमर ...अमर रहे.....के नारे लगाए गए! * माली समाज मीडिया प्रभारी प्रदीप कुमार कच्छावा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस फिल्म को "टैक्स फ्री" करने की भी मांग की ।
इस फिल्म को देखकर निकलने वाले हर शख्स के चेहरे पर खुशी, आशा के भाव, साफ नजर आते हैं कि आज हम उन परिस्थितियों और आज की परिस्थितियों में कितना अंतर है आज महिलाएं उच्च पदो पर विराजमान है ,वह माता सावित्रीबाई फुले की ही देन है ।
इस फिल्म को केवल माली समाज ही नहीं देख रहा है बल्कि अन्य समाज को भी पसंद आ रही है। मेरा आप सभी मीडियाकर्मी से अनुरोध है कि आप देश के विकास का चौथा स्तम्भ हैं। अनुरोध है की आप सभी परिवार सहित फिल्म "फुले" जरूर देखे।
इसमें माली समाज के लोगों में मां सावित्रीबाई फुले कल्याण संस्था की अध्यक्ष सीमा चौहान बबीता टांक, उर्मिला मारोठिया विजयलक्ष्मी सिसोदिया, प्रेरणा जादम पिंकी भाटी, कृष्णा टॉक, ललिता दगदी इत्यादि उपस्थित थे।
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